कौन उठायेगा पत्रकारों के लिये आवाज़...
कौन उठायेगा पत्रकारों के लिये आवाज़...
दुनिया भर के मुद्दे ...हर बड़ी समस्या का समाधान ..जिनके आगे प्रधानंमंत्री और राष्ट्रपति भी थराएं...दुशमन के हर वार का जिनके पास हो जवाब... हर समाज ,हर वर्ग,का जो रखे ख्याल ..जिनको देश का चौथा स्तंभ तक कहा जाता है ..हर जगह भगवान के साथ ये भी मौजूद होते हैं.. इनको ही पत्रकार कहते हैं....
याद है मुझको जब जेट एयरवेज़ ने अपने कर्मचारियों की छुट्टी की थी ..सब से पहले पहुच कर इन्होने उनकी स्टोरी दिखाई.. हर एक के ग़म के साथ ये मौजूद रहे नतीजा नरेश गोयल को अपना फैसला वापस लेना पड़ा .. हर एक घर फिर से खिल उठे ।सरकार के भी निर्देश ये ले आये ...
पर आज ये खुद मुसीबत में हैं ...हर दिन 40 से 50 पत्रकारों की विभन्न अखबारों और चैनलो से छुट्टी की जा रही है ..मंदी की मार बता कर.. न किसी अखबार में खबर आती है औऱ न ही कोई चैनल इसे कवर करता है ...क्योंकि जो पत्रकार इसपर बोलेगा लिखे गा अगला नम्बर उसका ही होगा ...
नामी गिरामी पत्रकारों को छोड़ दे बाकी का क्या होगा ..जिन्होने 40-45 साल अपनी ज़िन्दगी के बीता लिये हैं ..उन्हे क्या कहीं नौकरी मिलेगी..आज हर जगह ताला है ..कहीं नौकरी नहीं..मंदी की खबर दिखाने वाले आज मरने की कगार पर पहुच रहे हैं..
जनरैल सिंह ने सिख समुदाय का तो साथ दिया और जूता उछाला ..क्या कोई ऐसा जनरैल मौजूद नहीं जो पत्रकारों के लिये अपने कलम की सिहाई खर्च कर सके ..
नहीं नहीं क्योकि अब पत्रकारिता नहीं होती ..जो होता है वो दलाली है...
जिसे कलम के सौदागर बहुत अच्छा तरह निभा रहे हैं ..अपने आराम में खलल न पड़े सिर्फ बडी बड़ी बाते हमें करनी आती है ज्ञान बांटना आता है .. पर अपने ही समुदाय और वर्ग के साथ जो अन्याय रोज़ सुनने को मिल रहा उस पर न एक कॉलम, न एक एंकर रीड, और एक ग्राफिक्स भी नहीं चला सकते ।।
दुनिया भर के मुद्दे ...हर बड़ी समस्या का समाधान ..जिनके आगे प्रधानंमंत्री और राष्ट्रपति भी थराएं...दुशमन के हर वार का जिनके पास हो जवाब... हर समाज ,हर वर्ग,का जो रखे ख्याल ..जिनको देश का चौथा स्तंभ तक कहा जाता है ..हर जगह भगवान के साथ ये भी मौजूद होते हैं.. इनको ही पत्रकार कहते हैं....
याद है मुझको जब जेट एयरवेज़ ने अपने कर्मचारियों की छुट्टी की थी ..सब से पहले पहुच कर इन्होने उनकी स्टोरी दिखाई.. हर एक के ग़म के साथ ये मौजूद रहे नतीजा नरेश गोयल को अपना फैसला वापस लेना पड़ा .. हर एक घर फिर से खिल उठे ।सरकार के भी निर्देश ये ले आये ...
पर आज ये खुद मुसीबत में हैं ...हर दिन 40 से 50 पत्रकारों की विभन्न अखबारों और चैनलो से छुट्टी की जा रही है ..मंदी की मार बता कर.. न किसी अखबार में खबर आती है औऱ न ही कोई चैनल इसे कवर करता है ...क्योंकि जो पत्रकार इसपर बोलेगा लिखे गा अगला नम्बर उसका ही होगा ...
नामी गिरामी पत्रकारों को छोड़ दे बाकी का क्या होगा ..जिन्होने 40-45 साल अपनी ज़िन्दगी के बीता लिये हैं ..उन्हे क्या कहीं नौकरी मिलेगी..आज हर जगह ताला है ..कहीं नौकरी नहीं..मंदी की खबर दिखाने वाले आज मरने की कगार पर पहुच रहे हैं..
जनरैल सिंह ने सिख समुदाय का तो साथ दिया और जूता उछाला ..क्या कोई ऐसा जनरैल मौजूद नहीं जो पत्रकारों के लिये अपने कलम की सिहाई खर्च कर सके ..
नहीं नहीं क्योकि अब पत्रकारिता नहीं होती ..जो होता है वो दलाली है...
जिसे कलम के सौदागर बहुत अच्छा तरह निभा रहे हैं ..अपने आराम में खलल न पड़े सिर्फ बडी बड़ी बाते हमें करनी आती है ज्ञान बांटना आता है .. पर अपने ही समुदाय और वर्ग के साथ जो अन्याय रोज़ सुनने को मिल रहा उस पर न एक कॉलम, न एक एंकर रीड, और एक ग्राफिक्स भी नहीं चला सकते ।।
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