नीतीश कुमार के सुशासन में, क्या है महिलाओं का हाल?
नीतीश कुमार के
सुशासन में, क्या
है महिलाओं का
हाल?
2005 में जब नीतीश
कुमार बिहार के
मुख्यमंत्री बने थे
तो उन्होंने राज्य
में कानून और
व्यवस्था के ऊपर
बहुत काम किया
था। जिस राज्य
में लड़कियों को
स्कूल से इसलिए
दूर रखा जाता
था क्योंकि उनकी
सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं
थी, वहां बच्चियों
का स्कूल में
दाखिले का प्रतिशत
2005 के बाद काफी
बढ़ गया था। और यह
सब सिर्फ इसलिए
हो पाया क्योंकि
नीतीश कुमार की
पहली प्राथमिकता थी
राज्य में कानून
व्यवस्था को दुरुस्त
करना। इन सारी वजहों से
नीतीश कुमार ‘सुशासन
बाबू’ या ‘सुशासन
कुमार’ के नाम से भी
जाने जाने लगे।
लोगों ने उन पर भरोसा
जताते हुए उनको
2010 में फिर से
मुख्यमंत्री चुना और
उन्होंने 2014 तक फिर
से बिहार प्रदेश
के मुख्यमंत्री का
कार्यभार संभाले रखा।
पर इस कार्यकाल
में शायद वह इतने आत्म-संतुष्ट हो गए कि सिस्टम
में लचरता धीरे-धीरे घर
करने लगी।
राजनीतिक उथल-पुथल
के बाद 2015 में
फिर से नीतीश
कुमार एक नए गठजोड़ के
साथ बिहार के
मुख्यमंत्री बन कर
वापस सत्ता में
आए पर इस बार बात
पहले जैसी नहीं
रही। उनके सत्ता
में लौटने के
बाद, बिहार में
महिलाओं के खिलाफ
हिंसा के मामले
लगातार बढ़ते जा
रहे हैं। यहाँ
महिलाओं और बच्चियों
के साथ अश्लील
हरकत कर वीडियो
बनाना, उनके साथ
बलात्कार करना, दहेज
के लिए हत्या
करना, अपहरण करना
या फिर निर्वस्त्र
कर सड़कों पर
घुमाने की बात आम हो
गई है। क्योंकि
यह रिपोर्ट बिहार
में बढ़ रहे बलात्कार के मामलों
से संबंधित है,
इसलिए हम आपको सरकारी आंकड़ों
की मदद से स्थिति की
गंभीरता के बारे में बताएंगे।
2019 में जारी SCRB की रिपोर्ट
के मुताबिक राज्य
में हर 6 घंटे
में एक बलात्कार
का मामला सामने
आता है। पिछले
वर्ष बलात्कार के
मामलों में पटना
का नाम शीर्ष
पर था जबकि पटना राज्य
की राजधानी है
और महिलाओं के
लिए काफी सुरक्षित
मानी जाती है।
2018 के आंकड़ों में
भी, राज्य में
पटना, बलात्कार के
मामलों में सबसे
आगे रहा। यहां
कुल 123 मामले दर्ज
हुए।
बिहार पुलिस की
तरफ़ से जारी आंकड़ों की मदद से अगर
हम 2015 से लेकर
2020 तक की तुलना
करें तो 2015 में
जहाँ 1041 बलात्कार के मामले
सामने आए वहीं
2016 में इन मामलों
की संख्या थी
1008। पुलिस और
प्रशासन का ऐसा मानना था
कि बलात्कार के
मामलों में कमी इसलिए आई
है क्योंकि राज्य
में महिला सुरक्षा
पर जोर दिया
गया है। पर इस धारणा
के विपरीत अगले
ही वर्ष यह आंकड़े और
भी चौंकाने वाले
थे क्योंकि बलात्कार
के मामले 2017 में
बढ़कर 1198 हो गए।
1 साल के भीतर ही इन
मामलों का इतनी तेजी से
बढ़ना, पुलिस के
सामने चुनौती बनकर
आई पर असल में सच्चाई
ये भी है कि ये
आंकड़े इस ओर इंगित करते
हैं कि पुलिस
महकमा अपना काम
जिम्मेदारी से करने
में असमर्थ रही
है। बलात्कार के
मामलों के बढ़ने
के साथ-साथ यह भी
देखने में आया है कि
बलात्कार के तरीके
और भी घिनौने
और अमानवीय हो
गए हैं।
बलात्कारी इतने बेखौफ
हो गए हैं कि वो
इन कुकृत्यों का
वीडियो बनाकर उन्हें
इस
तरह वायरल कर
रहे हैं जैसे कि
उन्हें कानून का
कोई डर ही नहीं है।
इतना ही नहीं,
अपराधी इन पीड़ित
परिवारों को पुलिस
में जाकर मामला
दर्ज कराने के
खिलाफ धमकाते भी
हैं।
2018 के आंकड़े तो
और भी ज्यादा
चौंकाने वाले हैं
क्योंकि 2018 में ही
केवल 1475 बलात्कार के मामले
सामने आए हैं।
2018 के अप्रैल महीने
में, मुंबई स्थित
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ
सोशल साइंस द्वारा सौंपे गए
सामाजिक अंकेक्षण रिपोर्ट
के अनुसार, मुजफ्फरपुर
जिला स्थित एक
बालिका गृह में
34 नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण का
मामला सामने आया
था। साथ ही वैशाली जिले
के एक अल्पावास
गृह में महिलाओं
के यौन उत्पीड़न
का मामला भी
उसी वर्ष प्रकाश
में आया था।
राज्य प्रशासन द्वारा महिला
सुरक्षा की बात सुनिश्चित करने के बावजूद राज्य
के विभिन्न हिस्सों
में महिलाओं के
खिलाफ अपराध के
मामले लगातार दर्ज
किए जा रहे हैं जो
बिहार के लिए एक बड़ी
समस्या बनकर सामने
आ रहे हैं।
साल 2019 में, बिहार
पुलिस के आंकड़ों
के अनुसार, पूरे
राज्य से बलात्कार
के कुल 1450 मामले
सामने आए हैं। राज्य की
राजधानी पटना ने
2019 में महिलाओं के साथ हो रहे
अपराध के मामलों
में शीर्ष पर
होने का कुख्यात
गौरव अर्जित किया
है। उपलब्ध आंकड़ों
के अनुसार पटना
में 2019 के अंत
तक सबसे अधिक,
114 बलात्कार के मामले
दर्ज किए गए। इस सूची
को और भी लंबा करते
हुए कटिहार में
79 बलात्कार के मामले
दर्ज किए गए हैं, पूर्णिया
में 74 मामले, अररिया
में 67 मामले, मुजफ्फरपुर
में 58 मामले और
गया में 56 मामलों
का पंजीकरण देखा
गया है। और यह सब
केवल 2019 के मामले
हैं।
2020 के इस कोरोना
काल में भी, बलात्कार के मामलों
में कोई कमी नहीं आई
है। आंकड़ों के
मुताबिक, अप्रैल 2020 तक ही
404 बलात्कार के मामले
सामने आए हैं।
2015 से लेकर अब
तक के सारे आंकड़ों को इकट्ठा
किया जाए तो यह पता
चलता है कि औसतन 25% बलात्कार की
पीड़ित महिलाएं 20 वर्ष
से कम आयु की हैं
और 40 से 45% अपराध
में सम्मिलित अपराधियों
की उम्र 18 से
30 वर्ष है।
आखिर पुलिस इन
मामलों को रोक क्यों नहीं
पा रही है? महिला सुरक्षा
सरकार की पहली प्राथमिकता थी फिर भी महिलाएं
बिहार में असुरक्षित
क्यों है? पुलिस
अक्सर इस बात की दलील
देती है कि अधिकतर बलात्कार
की घटनाओं में,
अपराधी पीड़िता का
जानने वाला होता
है या फिर उसके परिवार
का कोई करीबी
होता है और इस वजह
से इन अपराधों
को रोक पाना
आसान नहीं होता
है। पर उन मामलों का
क्या जहाँ पुलिस
की नाक के नीचे से
अपराधी अपराध करके
निकल जाए?
मिसाल के तौर
पर रोहतास जिले
के जोगनी गाँव
का मामला लीजिए।
पुलिस में दर्ज
मामले के मुताबिक
गाँव की एक लड़की, जो
रात में शौच के लिए
बाहर निकली थी,
उसके साथ, गाँव
के बाहर स्कूल
में बने क्वॉरेंटाइन
सेंटर में रखे गए कुछ
मजदूरों ने दुष्कर्म
किया और उसका वीडियो भी
बनाया। क्वॉरेंटाइन सेंटर
में तो पुलिस
का पहरा भी होता है
फिर वहां से मजदूर कैसे
बाहर निकले और
फिर दुष्कर्म करने
के बाद फरार
कैसे हो गए? क्या यह
पुलिस की जिम्मेदारी
नहीं है कि वह इस
बात को सुनिश्चित
करें कि क्वॉरेंटाइन
सेंटर से कोई बाहर ना
जा सके?
पिछले साल बिहार
के मुजफ्फरपुर जिले
में, बलात्कार के
प्रयास का विरोध
करने पर 23 वर्ष
की लड़की को
जला दिया गया
था। पीड़िता 85% जल
चुकी थी और वर्तमान में एक अस्पताल में ‘कोमा
की स्थिति’ में,
अपने जीवन के लिए लड़
रही है। पीड़िता
के मां के अनुसार वह
लड़का उसे 3 साल
से परेशान कर
रहा था और पुलिस में
शिकायत दर्ज कराने
के बाद भी पुलिस ने
उसपर कोई कार्यवाही
नहीं की थी। इसी मामले
को लेकर एनएचआरसी(NHRC)
ने राज्य के
मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक
को नोटिस भी
जारी किया है।
वहीं दूसरी ओर
पटना की सड़कों
पर छात्रों ने,
हाल ही में एक 20 साल
की लड़की के
साथ हुए बलात्कार
के मामले में
विरोध प्रदर्शन किया
और सरकार के
खिलाफ नारेबाजी की।
प्रदर्शनकारियों पर प्रशासन
के द्वारा वाटर
कैनन का इस्तेमाल
करना ये साबित
करता है कि न्याय की
मांग करना भी अब शायद
अपराध हो। क्या
बिहार की बेटियों
की सुरक्षा करना
सरकार का काम नहीं है?
चुनाव सर पर
है और सरकार
अपना रिपोर्ट कार्ड
लेकर जनता के सामने फिर
से हाजिर होगी।
सरकार अपनी सफलताएं
गिनवायेगी और कामकाज
की बातें करेगी।
कुछ नई योजनाओं
के बारे में
घोषणा भी शायद करे, पर
महिला सुरक्षा की
बातें क्या सिर्फ
कागजों तक सीमित
रह जाएंगी? अभी
भी वक्त है कि बिहार
सरकार जल्द से जल्द बेटियों
का बलात्कार करने
वाले दरिंदों को
फांसी के फंदे तक पहुंचाए
नहीं तो बेटियों
को न्याय दिलाने
के लिए, जनता
खुद सड़कों पर
उतर आएगी और ‘समाज बनाम
सरकार’, महिला सुरक्षा
के लिए बिल्कुल
भी सही नहीं
होगा।
कानून और अपराध की रिपोर्ट....
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